Bharat Solanki

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लेखनी कहानी -18-Feb-2024

खुशी का एहसास मन में खिलाकर गगन विभोर से गिर जाता हूँ। शीतल छाव डालकर तु मन में खुशी से मिल जाता हूँ।

चकोर बन चाहत की चांदनी से अब हर खिल जाता हूं

अमावस्या को होकर तू लुप्त खामोशी से खामोश निगाहो से बिक जाता है।

नन्हे पन के हम वैज्ञानिक टुटलाहट से कल्पना संग इशारो को समझ पाते हैं।

कदम तेरे गगन को छुटे आसमान को बोले झूठे

उत्पति पर किया विचार चन्दा मामा ने डाला अचार

तेरे दर्श को हम लेते उधार पुराने कपडे हम देते Udit

तेरी चांदनी चकोर को भा गयी मेरी चांदनी किसी और को खा गयी

तुझसे कर छननी से पर्दा चांद समझ वो खा गयी जर्दा तुझे देख वो मुझे चिडाती बाबु वोल वो हंसी उडाती

गले में रस्सी वो अब फांड धमकी देकर बोलो अब चांद

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4 Comments

Gunjan Kamal

20-Feb-2024 02:41 PM

👌🏻👏🏻

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Mohammed urooj khan

19-Feb-2024 11:39 AM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Rupesh Kumar

18-Feb-2024 06:05 PM

बहुत खूब

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